Thursday, October 28, 2010

राहुकालम्

प्रत्येक वार को डेढ़ घंटा अनिष्ट कारक है, जिसे दक्षिण भारत में राहुकालम् कहते हैं। इसका प्रचलन अब उत्तर भारत में भी बढ़ने लगा है। अतः यथासम्भव शुभ कार्यो में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
1. रविवार     सायं 04.30 बजे से 06.00 बजे तक।
2. सोमवार     प्रातः 07.30 बजे से   09.00 बजे तक।
3. मंगलवार   दोपहर 03.00 बजे से 04.30 बजे तक।
4. बुद्धवार     दोपहर 12.00 बजे से 01.30 बजे तक।
5. गुरूवार     दोपहर 01.30 बजे से 03.00 बजे तक।
6. शुक्रवार     प्रातः 10.30 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक।
7. शनिवार     प्रातः 09.00 बजे से प्रातः 10.30 बजे तक।
क्रम:- सो, श, शु, बु, गु, मं, र।
           M  S     F      W     T      T    S
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ग्रह, दानवस्तु और मंत्र

सूर्य:- माणिक सुवर्ण  ताम्र गेहूं गुड़ घी रक्तवस्त्र रक्तपुष्प केसर मूंगा   रक्तगौ  रक्त चन्दन       07000 ओम हां हीं ह्रौं सः सूर्याय नमः अर्क
चन्द्र:- मोती सुवर्ण रजत चावल मिश्री दही श्वेतवस्त्र श्वेतपुष्प शंख कपूर  श्वेत बैल श्वेत चन्दन 11000 ओम श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः  पलाश
भौम:- मूंगा सुवर्ण ताम्र मसूर गुड़ घी रक्तवस्त्र रक्तकनेर केसर कस्तूरी रक्त बैल रक्त चन्दन 10000 ओम क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः खदिर
बुध:- पन्ना सुवर्ण कांसी मूंग खांड घी हरावस्त्र सर्व पुष्प हाथी दांत कपूर शस्त्र फल 09000 ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः अपामार्ग
गुरु पुखराज सुवर्ण कांसी चनादाल खांड धी पीतवस्त्र पीतपुष्प हल्दी पुस्तक घोड़ा पीतफल 19000 ओम ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः अश्वत्य
शुक्र:- हीरा सुवर्ण रजत चावल मिश्री दूघ श्वेतवस्त्र श्वेतपुष्प सुगन्ध दधि श्वेत धोड़ा श्वेत चन्दन 16000 ओम द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः उदुम्बर
शनि:- नीलम सुवर्ण लोहा उड़द कुलथी तेल कृष्णवस्त्र कृष्णपुष्प कस्तूरी कृष्णगो भैंस चप्पल 23000 ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः शमी
राहु:- गोमेद सुवर्ण सीसा तिल सरसों तेल नीलवस्त्र कृष्णपुष्प खड़ग कंबल घोड़ा शूर्प 18000 ओम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः दूर्वा
केतु:- लसनी सुवर्ण लोहा तिल सप्तधान्य तेल घूम्रवस्त्र घूम्रपुष्प नारियल कंबल बकरा शस्त्र 17000 ओम स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः कुशा
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मांगलिक दोष

मांगलिकः-कुण्डली में 1,4,7,8,12 घर में मंगल होने पर जातक / जातिका पूर्ण मांगलिक कहलाते हैं।
यदि वर की कुण्डली में 2,5,7,8,12 में मंगल हो तो पत्नी मर जाती है। कन्या के होने पर वैधव्य दोष लगता है।
दोष परिहारः-
1. कुण्डली में 1,2,4,7,8,11,12 में मंगल होने पर वर - वधू का विद्यटन होता है। परन्तु उच्चराशिस्थ एवं मित्रक्षेत्री होने पर दोष नहीं लगता।
2. लग्न में मंगल मेष राशि का, 12 में धनु का, 4 में वृश्चिक का, 7 में मीन का और 8 में कुम्भ का होने पर दोष नहीं होता।
3. 7,1,4,9,12 में शनि होने से मांगलिक दोष नहीं लगता।
4. मंगल का गुरु या चन्द्रमा के साथ होने पर भी मांगलिक दोष नहीं लगता। 1,2,4,5,7,8,11,12 में गुरु या चन्द्रमा के साथ मंगल बैठा हो अथवा इन भावों में मंगल हो परन्तु केन्द्र 4, 7, 10 में चन्द्रमा होने पर मांगलिक दोष नहीं लगता।

रत्न चिकित्सा

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1-25          Rrh


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3-5              jRrh


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2-25 jRrh

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अधिक जानकारी के लिए स‌ंपर्क करें-  09311424365 begin_of_the_skype_highlighting            09311424365      end_of_the_skype_highlighting, 07503124365  या swamijinoida@gmail.com

Thursday, October 14, 2010

उद्योग में वास्तु का महत्व

प्रिय जातकों,
यदि आप अपने कारखाने में सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए निम्न पहलुओं पर ध्यान दें, तो मॉ लक्ष्मी की सदैव आप पर कृपा बनी रहेगी तथा उन्नति आपके कदम चूमेगी ।
कारखाने में उत्तर और पूर्व में खाली जगह होनी चाहिए।
कारखाने का दरवाजा या प्रवेश पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या ऊँ का निशान होना चाहिए।
बॉस के केबिन के बाहर खड़े गणेश जी की तस्वीर, पेटिंग आदि लगानी चाहिए।
पूजन का स्थान दिशा में होना चाहिए।
कारखाने के सामने धार्मिक स्थल मंदिर, चर्च आदि नहीं होना चाहिए।
कारखाने के मालिक का कमरा दक्षिण-पश्चिम भाग में होना चाहिए।
सीढ़ी दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम भाग में बनवानी चाहिए।
मुख्य मशीन या भारी मशीन कारखाने के दक्षिण-पश्चिम, में होना चाहिए।
कच्चे माल का कमरा दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
तैयार माल का स्थल, पैकिंग और फारवर्डिंग वाले माल को उत्तर-पश्चिम उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व के स्थान पर रखना चाहिए।
गोदाम, भण्डार कक्ष या स्टोर रूम दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में होना चाहिए।
पानी की टंकी दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम में होनी चाहिए।
कारखाने का बॉयलर, जेनरेटर, ओवन, ट्रान्सफार्मर, तेल-इंजन आदि दक्षिण-पूर्व की दिशा में रखना चाहिए।
वजन तोलने वाली मशीन उत्तर-पश्चिम, मध्य-उत्तर या मध्य-पूर्व में रखना चाहिए।
कैशियर को पूर्व की दिशा में मुंह करके बैठना चाहिए। कैश बॉक्स दाएं हाथ की तरफ रखना चाहिए।
एकाउण्ट सेक्शन उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। एकाउन्ट ऑफिसर को उत्तर दिशा में बैठना चाहिए।
लॉकर और तिजोरी के लिए दक्षिणी भाग शुभ है जिसमें नकदी एवं जरूरी कागजात रख सकते हैं।
छत को सदैव साफ-सुथरा रखना चाहिए।
कार, स्कूटर आदि वाहन उत्तर, उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम भाग में खड़ा करना चाहिए।
उत्तर-पूर्व दिशा सदैव खाली रखना चाहिए, यहां से धन का आगमन होता है।
उत्तर-पष्चिम या दक्षिण-पूर्व में से किसी एक जगह पर शौचालय बनवाना चाहिए।
इति शुभम भूयात्।
शुभाशीर्वाद सहित ।
डॉ0 नरेन्द्र दीक्षित
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Tuesday, October 12, 2010

स्वप्न का शुभ - अशुभ फल








यदि दिन में घटित होने वाली बात रात्रि को सोते समय ज्यों की त्यों दिखाई देती है तो उस स्वप्न पर विश्वास न करें । दिन में जब हम बार-बार किसी वस्तु के बारे में सोंचते हैं और वही स्वप्न में हमें दिखाई देती है उस पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए । दिन के समय या सायं के समय स्वप्न दिखाई देता है वह भी सच नहीं होता है । रात्रि के समय प्रथम प्रहर में यदि स्वप्न दिखाई दे तो उसका फल एक वर्ष में होता है । दूसरे प्रहर के स्वप्न का फल छः महीने में, तीसरे प्रहर के स्वप्न का फल तीन माह में और अंतिम चतुर्थ प्रहर व ब्रह्म मुहुर्त में देखे गये स्वप्न का फल एक माह में मिलता है । अच्छा या बुरा स्वपन सूर्योदय के समय देखा जाय, उसका फल कुछ घण्टों में ही मिल जाता है । ऐसे में यदि कोई अशुभ स्वप्न दिखाई दे तो महामृत्युन्जय, गायत्री, हवनयज्ञ, आदि करवाना चाहिए । नीचे कुछ शुभ-अशुभ स्वप्न और उनके फलों के विषय में जानकारी दी जा रही है-


अन्न दिखाई देना  -धन का लाभ,
अंग कटना   -शुभ समाचार मिलना,
अंगूठी पहनना -खुशी प्राप्त होना,
अतिथि देखना -अचानक विपत्ति आना,
आकाश देखना -उन्नति हो,
अर्थी देखना - रोग से छुटकारा हो,
अन्धेरा देखना - बधा आना,
औषधि खाना या पीना- रोग दूर होना,
उल्लू देखना -रोग या शोक का आना,
आत्महत्या देखना -आयु लम्बी होना,
ऑपरेशन होते देखना -रोग की सम्भावना,
इमली खाना -पुत्र प्राप्त करना,
इन्द्र धनुष देखना -मुकदमें में जीत हो,
कब्रिस्तान देखना -सम्मान प्राप्त होना,
काला नाग देखना -राज्य सम्मान हो,
खून करना -दुःख आना,
खुजली करना -बीमारी आना,
गर्भपात देखना -असाध्य रोग,
ग्रहण देखना -अपमान होना,
गंगा नदी देखना -मुक्ति होना,
घड़ी देखना -तरक्की होना,
घोड़ा देखना -तरक्की होना,
चट्टाने देखना -काम में सफलता,
चिराग देखना -सुख शान्ति होना,
चैराहा देखना -धन हानि,
घर बनना -ख्याति मिलना,
छींक आना -कार्य में बाधा,
छिपकली देखना -अकस्मात् लाभ,
जागरण होते देखना -आस्था में वृद्धि,
जयमाला देखना -समृद्धि में कमी,
जेब कटना -कारोबार में घाटा,
ज्योतिषी देखना -सुख समृद्धि होना,
झोपड़ी देखना -घर प्राप्त होना,
झूला झूलते देखना -मन अशान्त होना,
डाक्टर देखना -घर में रोग आना,
डाकिया देखना -समाचार मिलना,
डाकू देखना -धन की हानि,
ढोलक बजाना -किसी व्यक्ति से मिलना,
थप्पड़ मारना -झागड़ा होना,
थप्पड़ खाना -शुभ,
छान करना -शुभ,
दॉंत निकलते देखना -दुःख होना,
दवाई पीना -रोग खत्म होना,
दुकान खाली देखना -धन की कमी होना,
दीवार गिरते देखना -धन की हानि,
धार्मिक कार्य करना -परिवार का सुख,
पशु देखना -कारोबार में लाभ,
पक्षी देखना -हानि होना,
पूजा करना -मित्रों से लाभ,
पर्वत गिरते देखना -धन नष्ट होना,
प्रकाश देखना -ज्ञान मिलना,
पकवान देखना -शुभकारक,
पाखण्डी देखना -धन का नुकसान,
परदेसी देखना -विदेश यात्रा होना,
पका फल देखना -अच्छा होता है,
नई दुल्हन देखना -घर में क्लेश होना,
फल देखना -सन्तान प्राप्ति,
फांसी लगते देखना -बाधा पैदा होना,
बंजारा देखना -व्यापार में लाभ,
वर्षगांठ देखना -आयु क्षीण होना,
बाढ़ आते देखना -मान-मर्यादा में कमी,
सगाई देखना -विवाह देर से होना,
वर्षा होते देखना -बीमारी या झगड़ा,
बाजार देखना -खुशहाली होना,
भूकम्प देखना -शत्रु से भय,
भूत प्रेत देखना -सौभाग्य बढ़ना,
भिखारी देखना -यात्रा होना
मुर्दे के साथ खाना -दुःख की समाप्ति,
जहर खाना -दुःख आना,
मिठाई खाना -तरक्की होना,
महात्मा देखना -धन मिलना,
यात्रा करना -धन मिलना,
युद्ध देखना -सफलता प्राप्त करना,
यमराज देखना -उम्र बढ़ना
रसोई घर देखना -अन्न धन की वृद्धि,
मूर्ति देखना -मोक्ष देखना,
मृत्यु देखना -भाग्य उदय होना,
वन में दौड़ना -चिता होना,
श्मशान देखना -लंबी आयु होना,
शेषनाग देखना -कल्याणकारी,
शेर देखना -लक्ष्मी की प्राप्ति,
समाचार पत्र देखना -धन की हानि,
सोना देखना -धन की हानि,
हत्या देखना -दुश्मन बनना,
हाथी दांत देखना -अच्छी फसल होना,
हड्डी देखना -धन की प्राप्ति,
श्राद्ध देखना -पित्र खुश होना,
सेहरा देखना -घर में क्लेश,
हवालात देखना -सम्मान मिलना,
स्टेशन देखना -यात्रा का शुभ होना,
यज्ञ देखना -सौभाग्य बढ़ना,
शोक सभा देखना -आनन्द बढ़ना,
मृत देखना -शुभ होता है,
मधुमक्खी देखना -कारोबार में लाभ,
हरा बगाचा देखना -अन्न-धन-जन वृद्धि,
अंधेरा देखना -बांधा आना,
जंगल देखना -राज्य एवं यश मिलना,
दंतमंजन करना -प्रसन्नता मिलना,
पूर्वज के दर्शन होना -सुरक्षा होगी,
प्रेमी देखना -जल्दी मिलन हो,
दही-दूध देखना -कारोबार में उन्नति,
दुकान का छोड़ना -भाग्यहीन हो,
चौपड़ खेलना -कार्य में प्रगति,
दुश्मन दिखाई देना -धन लाभ होना,
मुर्दा देखना -घर में झगड़ा,
शीशा तोड़ना -खुशी में भंग पड़ना,
बटुआ पाना -सुख ऐश्वर्य हो,
बटुआ खोना -दुःख मिलेगा,
दवाई देखना -बीमारी आने वाली है,
दवाई गिरना -रोग से मुक्ति पाना,
दॉंत दिखाई देना -स्वास्थ्य मे सुधार होना,
पूजा करते हुए देखना -मन में शान्ति होना,
पहाड़ देखना -अशुभ होने का डर होना,
प्रसाद बांटना -शान्ति मिलेगी,
फिल्म देखना -कियी काम में बदलाव,
नग्न शव देखना -पाप या दोष खत्म हो,
मित्र बनना -शुभ कार्य होना,
नदी दिखाई देना -अच्छा स्वास्थ्य मिले,
गन्दा नाला देखना -विपत्ति आयेगी,
भाभी दिखाई देना -भतीजा पैदा हो,
उल्टे वस्त्र पहनना -मजाक हो,
खुद को नहाते हुए देखना -बैराग पैदा हो,
बौना आदमी दिखई देना -शुभ समय हो,
बिल्ली देखना -अशुभ,
रत्नो का दिखाई देना -शुभ,
छींकते हुए देखना -कार्य में बाधा,
क्षियों का चहचहाना -झगड़े का डर हो,
रूपये देखना -मेहनती बने,
सिक्के देखना -बीमार हो,
गर्भ दिखाई देना -मुसीबतें होंगी,
शतरंज देखना -समय की हानि होगी,
पत्थर दिचााई देना -शत्रु बढ़े,
कुत्ते का काटना -मुश्किलें बढ़ेगी,
हंसते हुए देखना -मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी,
भूकम्प देखना -सन्तान को कष्ट होगा,
खाई देखना -धन एवं प्रसिद्धि मिलेगी,
धनुष खींचना -लाभकारी यात्रा होना,
कीचड़ में फंसना -कष्ट एवं खर्च होना,
अपनी मृत्यु देखना -आयु बढ़ना,

अधिक जानकारी के लिए स‌ंपर्क करें- 09311242802 या swamijinoida@gmail.com 

श्रृष्टि के चार युग


युग के विषय में
1. सतयुग
सतयुग की उत्पत्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को दिन बुधवार के प्रथम प्रहर में श्रवण नक्षत्र के वृद्धि योग में हुईं। इसके 1728000 हैं।
इस युग में भगवान श्री नारायण के चार अवतार हुए- 1. मत्स्य 2. कच्छप 3. वाराह और 4. नृसिंह अवतार । धर्म चार चरणों में पूर्ण था। 
2. त्रेतायुग
इस युग की उत्पत्ति वैषाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को दिन सोमवार के दूसरे प्रहर में रोहिणी नक्षत्र एवं शोभन योग में हुई। इसके वर्ष 1296000 हैं।
इस युग में तीन अवतार हुए- 1. श्रीवामन, 2. श्रीपरशुराम 3. श्री रामचन्द्र अवतार।
3. द्वापरयुग
इस युग की उत्पत्ति माद्य कृष्ण-पक्ष की अमावस्या को दिन शुक्रवार के तृतीय प्रहर में घनिष्ठा नक्षत्र, वरियान योग में हुई। इसके वर्ष 864000 हैं।
इस युग में पूर्णब्रम्ह के दो अवतार हुए- 1. श्रीकृष्ण, 2. बलदेव ।
4. कलियुग
इस युग की उत्पत्ति भाद्रपद कृष्ण पक्ष की त्रयोदषी को दिन रविवार के आधी रात्रि के समय में अश्लेशा नक्षत्र व्यतिपात योग में हुई। इसके वर्ष 432000 हैं।
इस में अवतार- 1. बुद्ध 2. कल्कि जो अब होना है।
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भारतीय दर्शन और योग

भारतीय दर्शन और योग
भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को छह कोणों से समझने की कोशिश की है। वे जानते थे कि मानव की सबसे बड़ी इच्छा दुख से छुटकारा है। वे इसके प्रति भी आश्वस्त थे कि इन सिद्धांतों के जरिये उन्होंने इसका निदान खोज लिया है। आइए देखें, ये दार्शनिक सिद्धांत क्या हैं और उनके प्रणेता कौन-कौन हैं।

न्याय : तर्क प्रधान इस प्रत्यक्ष विज्ञान के शुरुआत करने वाले अक्षपाद गौतम हैं। यहाँ न्याय से मतलब उस प्रक्रिया से है जिससे मनुष्य किसी नतीजे पर पहुँच सके - नीयते अनेन इति न्यायः ।

प्रत्येक ज्ञान के लिए चार चीजों का होना आवश्यक है -

1. प्रमाता अर्थात्‌ ज्ञान प्राप्त करने वाला। 2. प्रमेय अर्थात्‌ जिसका ज्ञान प्राप्त करना अभीष्ट है। 3. ज्ञान और 4. प्रमाण अर्थात ज्ञान प्राप्त करने का साधन।

वैशेषिक दर्शन : महर्षि कणाद ने इस दार्शनिक मत द्वारा ऐसे धर्म की प्रतिष्ठा का ध्येय रखा है जो भौतिक जीवन को बेहतर बनाए और लोकोत्तर जीवन में मोक्ष का साधन हो।

'यतोम्युदय निश्रेयस सिद्धि : स धर्मः'

न्याय दर्शन जहाँ अंतर्जगत और ज्ञान की मीमांसा को प्रधानता देता है, वहीं वैशेषिक दर्शन बाह्य जगत की विस्तृत समीक्षा करता है। इसमें आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए इसे अजर, अमर और अविकारी माना गया है।

न्याय और वैशेषिक दोनों ही दर्शन परमाणु से संसार की शुरुआत मानते हैं। इनके अनुसार सृष्टि रचना में परमाणु उपादान कारण और ईश्वर निमित्त कारण है। इसके अनुसार जीवात्मा विभु और नित्य है तथा दुःखों का खत्म होना ही मोक्ष है।

समस्त वस्तुओं को कुल सात पदार्थों के अंतर्गत माना गया है -

1. द्रव्य, 2. गुण, 3. कर्म, 4. सामान्य, 5. विशेष, 6. समवाय, 7. अभाव।

मीमांसा : वेद के मुख्य दो भाग है - कर्मकांड और वेदांत। संहिता और ब्राह्मण में कर्मकांड का प्रतिपादन किया गया है तथा उपनिषद् एवं आरण्यक में ज्ञान का। मीमांसा दर्शन के आद्याचार्य जैमिनि ने इस कर्मकाण्ड को सिद्धांतबद्ध किया है।

इस दार्शनिक मत के अनुसार प्रतिपादित कर्मों के द्वारा ही मनुष्य अभीष्ट प्राप्त कर सकता है। इसके अनुसार कर्म तीन प्रकार के हैं - काम्य, निषिद्ध और नित्य। वास्तव में बिना कर्म के ईश्वर भी फल देने में समर्थ नहीं है।

मीमांसा दर्शन ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हुए बहुदेववादी है। इसमें यज्ञादि कर्मों के परिणाम के लिए एक अदृश्य शक्ति की कल्पना की गई है, जो मनुष्य को शुभ और अशुभ फल देती है।
सांख्य : सच पूछा जाए तो यह एक द्वैतवादी दर्शन है। इसके अनुसार विश्व प्रपंच के प्रकृति और पुरुष दो मूल तत्व हैं। पुरुष चेतन तत्व है और प्रकृति जड़। इसके अनुसार जगत का उपादान तत्व प्रकृति है। सत्व, रज और तम आदि तीन गुण उसके अभिन्न अंग हैं। जब इन तीनों गुणों की साम्यावस्था भंग हो जाती है और उसके गुणों में क्षोम उत्पन्न होता है तब सृष्टि का आरंभ होता है।

प्रथमतः महतत्त्व, अहंकार और पंच तन्मात्राओं को मिलाकर सात तत्व उत्पन्न होते हैं। अहंकार का गुणों के साथ संयोग होने से ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, मन तथा आकाश इन पाँच महाभूतों की उत्पत्ति होती है।

वेदांत : महर्षि वादरायण जो संभवतः वेदव्यास ही हैं, का 'ब्रह्मसूत्र' और उपनिषद वेदांत दर्शन के मूल स्रोत हैं। आदि शंकराचार्य ने ब्रह्म सूत्र, उपनिषद और श्रीमद्भगवद् गीता पर भाष्य लिख कर अद्वैत मत का जो प्रतिपादन किया उसका भारतीय दर्शन के विकास में इतना प्रभाव पड़ा है कि इन ग्रन्थों को ही ' प्रस्थान त्रयी''के नाम से जाना जाने लगा। वेदांत दर्शन निर्विकल्प, निरुपाधि और निर्विकार ब्रह्म को ही सत्य मानता है।

'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' इसके अनुसार जगत की उत्पत्ति ब्रह्म से ही होती है - 'जन्माद्यस्य यतः' (ब्रह्म सूत्र - 2), उत्पन्न होने के पश्चात जगत ब्रह्म में ही मौजूद रहता है और आखिरकार उसी में लीन हो जाता है। इसके अनुसार जगत की यथार्थ सत्ता नहीं है। सत्य रूप ब्रह्म के प्रतिबिम्ब के कारण ही जगत सत्य प्रतीत होता है।

जीवात्मा ब्रह्म से भिन्न नहीं है। अविधा से आच्छादित होने पर ही ब्रह्म जीवात्मा बनता है और अविधा का नाश होने पर वह उसमें तद्रूप होता है।

योग : महर्षि पतंजलि का 'योगसूत्र' योग दर्शन का प्रथम व्यवस्थित और वैज्ञानिक अध्ययन है। योगदर्शन इन चार विस्तृत भाग, जिन्हें इस ग्रंथ में पाद कहा गया है, में विभाजित है- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद तथा कैवल्यपाद। प्रथम पाद का मुख्य विषय चित्त की विभिन्न वृत्तियों के नियमन से समाधि के द्वारा आत्म साक्षात्कार करना है।

द्वितीय पाद में पाँच बहिरंग साधन - यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का विवेचन है। तृतीय पाद में अंतरंग तीन धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन है। इसमें योगाभ्यास के दौरान प्राप्त होने वाली विभिन्न सिद्धियों का भी उल्लेख हुआ है, किन्तु ऋषि के अनुसार वे समाधि के मार्ग की बाधाएँ ही हैं। चतुर्थ कैवल्यपाद मुक्ति की वह परमोच्च अवस्था है, जहाँ एक योग साधक अपने मूल स्रोत से एकाकार हो जाता है।
दूसरे ही सूत्र में योग की परिभाषा देते हुए पतंजलि कहते हैं - 'योगाश्चित्त वृत्तिनिरोधः'। अर्थात योग चित्त की वृत्तियों का संयमन है। चित्त वृत्तियों के निरोध के लिए महर्षि पतंजलि ने द्वितीय और तृतीय पाद में जिस अष्टांग योग साधन का उपदेश दिया है, उसका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है :-

1. यम : कायिक, वाचिक तथा मानसिक इस संयम के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय चोरी न करना, ब्रह्मचर्य जैसे अपरिग्रह आदि पाँच आचार विहित हैं। इनका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन और समाज दोनों ही दुष्प्रभावित होते हैं।

2. नियम : मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करते हेतु नियमों का विधान किया गया है। इनके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान का समावेश है। शौच में बाह्य तथा आन्तर दोनों ही प्रकार की शुद्धि समाविष्ट है।

3. आसन : पतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है। परवर्ती विचारकों ने अनेक आसनों की कल्पना की है। वास्तव में आसन हठयोग का एक मुख्य विषय ही है। इनसे संबंधित 'हठयोग प्रतीपिका' 'घरेण्ड संहिता' तथा 'योगाशिखोपनिषद्' में विस्तार से वर्णन मिलता है।

4. प्राणायाम : योग की यथेष्ट भूमिका के लिए नाड़ी साधन और उनके जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है।

5. प्रत्याहार : इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियाँ मनुष्य को बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है।

6. धारणा : चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।

7. ध्यान : जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।

8. समाधि : यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।

समाधि को भी दो श्रेणियाँ हैं - सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।
नाम परिवर्तन और भाग्य
एक समय वह भी था जब लोग अपने नाम के बजाए काम पर अधिक ध्यान दिया करते थे, परंतु इस संबंध में लोगों की बदलती हुई प्रवृत्ति को देखकर लगता है कि अब उनके लिए नाम का महत्व पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा हो गया है और इसीलिए वे अपने पहले रखे गए नामों में परिवर्तन करने लगे हैं।

अब प्रश्न आता है कि लोगों को नाम बदलने की जरूरत क्यों पड़ती है! वास्तव में इस प्रश्न के कई पहलू हैं। नाम परिवर्तन के ज्यादातर मामलों में लड़कियाँ ही अपना नाम बदल रही होती हैं और इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि करीब-करीब सभी धर्मों में विवाह से पहले लड़कियों के नाम के साथ जहाँ पिता का उपनाम या कुलनाम (सरनेम) लगता है वहीं विवाह के उपरांत पति का कुलनाम लगने लगता है। ऐसे मामलों में सामान्यतः उनका उपनाम ही बदलता है। तथापि कुछ परिवारों में विवाह के बाद लड़की का नाम बदलने की परंपरा होती है।

कुछ मामलों में लोग इसलिए भी नाम बदलते हैं क्योंकि उनके नाम में पिता का नाम या उनका कुलनाम नहीं जुड़ा होता। शुरू में तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन बाद में बड़े होने पर अथवा जरूरत पड़ने पर उन्हें यह अनुभव होता है कि उनका कुलनाम भी नाम के साथ होना चाहिए। अतः लोग अपना नाम परिवर्तन कर लेते हैं।

  एक समय वह भी था जब लोग अपने नाम के बजाए काम पर अधिक ध्यान दिया करते थे, परंतु इस संबंध में लोगों की बदलती हुई प्रवृत्ति को देखकर लगता है कि अब उनके लिए नाम का महत्व पहले की अपेक्षा ज्यादा हो गया है।      



कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बचपन में रखे गए पिंकी, पिंकू, मुन्ना, मुन्नी, पप्पू आदि जैसे बच्चों के प्यार के नाम ही जन्म प्रमाण पत्र या स्कूल के प्रमाण पत्रों में यह सोचकर दर्ज करवा दिए जाते हैं कि फिलहाल तो यही रहने देते हैं, कुछ समय बाद बदल देंगे, लेकिन समय बीतता रहता है और अभिभावक को नाम बदलना याद ही नहीं रहता। ऐसे में बड़े होने पर बच्चों को अपने ही नाम से शर्म आने लगती है। अतः इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए भी लोग अपना नाम बदल देते हैं।

कई बार लोग किसी ज्योतिषी की सलाह पर भाग्य की दृष्टि से भी अपने नाम में परिवर्तन कर लेते हैं। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ एस्ट्रोलॉजर्स सोसाइटी के अध्यक्ष अरुण कुमार बंसल इस बारे में जानकारी देते हैं कि ज्योतिष में नाम बहुत महत्वपूर्ण होता है। नाम वह होता है जिसे सुनकर व्यक्ति या पशु जाग जाए या मुड़कर देखने लगे। व्यक्ति का नाम बार-बार बोला जाता है, इसलिए उसका बहुत प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है।

बंसल के अनुसार 'ज्योतिष में नाम का केवल प्रथम अक्षर ही अधिक महत्वपूर्ण होता है, परंतु अंकशास्त्र में पूरे नाम की वर्तनी का महत्व होता है। लोग अपने मूलांक और भाग्यांक को ध्यान में रखते हुए नाम रखने का प्रयास करते हैं। यदि किसी का नाम इनके अनुरूप न हो तो वह अपना नाम बदलने की सोचता है। वैसे ज्योतिषीय दृष्टि से नाम बदलने का चलन ज्यादातर उच्च वर्ग के लोगों में ही अधिक देखा जाता है।'

ज्योतिषीय कारणों से लोग कभी तो अपना पूरा नाम ही बदल डालते हैं या कभी अपने पुराने नाम में ही थोड़ा बहुत हेरफेर अथवा वर्तनी में परिवर्तन कर देते हैं। ऐसे लोग नाम परिवर्तन करने के लिए कभी उसमें कुछ जोड़ते हैं तो कभी कुछ घटाते हैं। कभी-कभार लोग इसलिए भी नाम आंशिक परिवर्तन करते हैं क्योंकि उनके पुराने नाम की वर्तनी गलत होती है और जब उन्हें इस बात का ज्ञान होता है तो वे भी मानने लगते हैं कि गलत वर्तनी वाला नाम उनके व्यक्तित्व में बाधा डाल रहा है। इस प्रकार के मामलों में भी लोग अपना नाम बदल लेते हैं।

यूँ तो नाम रखना या उसमें परिवर्तन करना पूरी तरह से व्यक्तिगत होता है और कोई भी कभी भी अपना नाम परिवर्तन कर सकता है लेकिन जहाँ तक सरकारी दस्तावेजों, प्रमाण पत्रों, खातों आदि में नए नाम के अनुसार परिवर्तन करवाने की बात है तो इसके लिए अनिवार्य रूप से कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। नाम परिवर्तन के लिए व्यक्ति को इस संबंध में 'एफिडेविट' के साथ-साथ किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों में अपने बारे में बताते हुए इस बात की जानकारी देनी पड़ती है।
वर्ष 2008 के ग्रहण व अंक ज्योतिष
ग्रह राजा को रंक और रंक को राजा बनाते हैं। सन्‌ 2008 में एक पक्ष में दो बड़े खण्डग्रास सूर्य एवं चन्द्रग्रहण होंगे।

प्रथम ग्रहण सूर्यग्रहण
यह खण्डग्रासीय सूर्यग्रहण 1 अगस्त 2008 को दोपहर 3 बजकर 34 मिनट से प्रारंभ होकर मोक्ष 5 बजकर 55 मिनट तक होगा। यह ग्रहण पुष्य नक्षत्र एवं कर्क राशि में होगा। अतः कर्क, मेष, सिंह, धनु को अशुभ व मिथुन, वृश्चिक, मकर, मीन को मध्यम, वृषभ, कन्या, तुला एवं कुंभको शुभ रहेगा।

द्वितीय ग्रहण चन्द्रग्रहण
यह खण्डग्रासीय चन्द्रग्रहण 16/17 अगस्त की रात्रि को 1 बजकर 20 मिनट से प्रारंभ होकर रात्रि को 4 बजकर 25 मिनट पर मोक्ष होगा।

यह ग्रहण धनिष्ठा नक्षत्र एवं कुंभ राशि पर होने से कुंभ राशि के लिए विशेष अशुभ, वहीं मेष को व्यापार लाभ, सिंह को धनलाभ, वृश्चिक को राजकीय उन्नति, मीन को परिवार वृद्धि एवं लाभ के योग, मकर को अतिव्यय से कष्ट, कुंभ को स्वास्थ्य एवं पदहानि, मिथुन को संबंध विच्छेद, तुला को व्यापार कष्ट तथा वृषभ, कर्क, कन्या एवं धनु राशि को मिश्रित फलकारी सिद्ध होगा।

शनि, मंगल एवं राहु-केतु की स्थिति राजकीय अधिकारी एवं राजनेताओं के लिए शुभ नहीं है। वर्ष में दो बार राष्ट्रध्वज झुकने के योग हैं।

अंक ज्योतिष की दृष्टि से वार्षिक फल
जिनका जन्म 1, 10, 19, 28 तारीख को हुआ है, उन्हें मान-सम्मान एवं शासकीय लाभ प्राप्त होगा। यदि ये आयु के 1, 10, 19, 28, 37, 46, 55, 64, 73, 82वें वर्ष में चल रहे हैं तो श्रेष्ठ लाभ प्राप्त होंगे।

जिनका जन्म 2, 11, 20, 29 तारीख को हुआ है, उन्हें व्यापार में लाभ होगा। यदि ये आयु के 2, 11, 20, 29, 38, 47, 56, 65, 74, 83वें वर्ष में चल रहे हैं तो सम्मान प्राप्त होगा।

जिनका जन्म 3, 12, 21, 30 तारीख को हुआ है, उन्हें राजनीति से लाभ, शिक्षा में लाभ होगा। यदि ये आयु के 3, 12, 21, 30, 39, 48, 57, 66, 75, 84वें वर्ष में चल रहे हैं तो पदोन्नति प्राप्त होगी।

जिनका जन्म 4, 13, 23, 31 तारीख को हुआ है, उन्हें विवाह एवं परिवार से लाभ, नौकरी में पदोन्नति के योग हैं। यदि ये आयु के 4, 13, 33, 34, 40, 49, 58, 67, 76, 85वें वर्ष में चल रहे हैं तो शुभ फलों में वृद्धि होगी।
जिनका जन्म 5, 14, 23 तारीख को हुआ है उन्हें यात्रा तथा नवीन कार्यों से लाभ के योग हैं। यदि ये आयु के 5, 14, 23, 41, 50, 59, 77वें वर्ष में चल रहे हैं तो लाभ में वृद्धि के योग हैं।

जिनका जन्म 6, 15, 24 तारीख को हुआ है, उन्हें राजकीय एवं शारीरिक, पारिवारिक कष्ट के योग हैं। यदि ये आयु के 24, 33, 42, 51, 60वें वर्ष में चल रहे हैं तो अशुभ फल में वृद्धि के योग हैं।

जिनका जन्म 7, 16, 25 तारीख को हुआ है उन्हें संपत्ति प्राप्ति के योग हैं। यदि ये आयु के 25, 34, 43, 52, 61वें वर्ष में चल रहे हैं तो श्रेष्ठ संपत्ति लाभ के योग, विद्यार्थियों को सफलता प्राप्त होगी।

जिनका जन्म 8, 17, 26 तारीख को हुआ है, उन्हें कष्ट के योग। यदि ये आयु के 17, 26, 35, 44, 53, 62वें वर्ष में चल रहे हैं तो सावधानी रखें।

जिनका जन्म 9, 18, 27 तारीख को हुआ है, उन्हें मिश्रित फल प्राप्त होंगे। यदि ये आयु के 18, 27, 36, 45, 54वें वर्ष में चल रहे हैं तो लाभ प्राप्त होगा।
नेत्र शक्ति से त्राटक साधना
त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है।

प्रबल इच्छाशक्ति से साधना करने पर सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती हैं। तप में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ योग शास्त्र में निहित हैं। इनमें 'त्राटक' उपासना सर्वोपरि है। हठयोग में इसको दिव्य साधना से संबोधित करते हैं। त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है।

इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। यह साधना लगातार तीन महीने तक करने के बाद उसके प्रभावों का अनुभव साधक को मिलने लगता है। इस साधना में उपासक की असीम श्रद्धा, धैर्य के अतिरिक्त उसकी पवित्रता भी आवश्यक है।

http://hindi.webdunia.com/images/quote_open.gifतप में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ योग शास्त्र में निहित हैं। इनमें 'त्राटक' उपासना सर्वोपरि है। हठयोग में इसे दिव्य साधना कहते हैं। त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता,वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से संकल्प को पूर्ण कर लेता है।http://hindi.webdunia.com/images/quote_close.gif



विधि :
यह सिद्धि रात्रि में अथवा किसी अँधेरे वाले स्थान पर करना चाहिए। प्रतिदिन लगभग एक निश्चित समय पर बीस मिनट तक करना चाहिए। स्थान शांत एकांत ही रहना चाहिए। साधना करते समय किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शारीरिक शुद्धि व स्वच्छ ढीले कपड़े पहनकर किसी आसन पर बैठ जाइए।

अपने आसन से लगभग तीन फुट की दूरी पर मोमबत्ती अथवा दीपक को आप अपनी आँखों अथवा चेहरे की ऊँचाई पर रखिए। अर्थात एक समान दूरी पर दीपक या मोमबत्ती, जो जलती रहे, जिस पर उपासना के समय हवा नहीं लगे व वह बुझे भी नहीं, इस प्रकार रखिए। इसके आगे एकाग्र मन से व स्थिर आँखों से उस ज्योति को देखते रहें। जब तक आँखों में कोई अधिक कठिनाई नहीं हो तब तक पलक नहीं गिराएँ। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखें। धीरे-धीरे आपको ज्योति का तेज बढ़ता हुआ दिखाई देगा। कुछ दिनों उपरांत आपको ज्योति के प्रकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देगा।

इस स्थिति के पश्चात उस ज्योति में संकल्पित व्यक्ति व कार्य भी प्रकाशवान होने लगेगा। इस आकृति के अनुरूप ही घटनाएँ जीवन में घटित होने लगेंगी। इस अवस्था के साथ ही आपकी आँखों में एक विशिष्ट तरह का तेज आ जाएगा। जब आप किसी पर नजरें डालेंगे, तो वह आपके मनोनुकूल कार्य करने लगेगा।

इस सिद्धि का उपयोग सकारात्मक तथा निरापद कार्यों में करने से त्राटक शक्ति की वृद्धि होने लगती है। दृष्टिमात्र से अग्नि उत्पन्न करने वाले योगियों में भी त्राटक सिद्धि रहती है। इस सिद्धि से मन में एकाग्रता, संकल्प शक्ति व कार्य सिद्धि के योग बनते हैं। कमजोर नेत्र ज्योति वालों को इस साधना को शनैः-शनैः वृद्धिक्रम में करना चाहिए।
मूँगा पहनना भी पड़ सकता है महँगा
अक्‍सर लोग मंगल के रत्‍न मूँगा को ऊर्जा का प्रतीक बताते हैं, जिसके पहनने से आत्‍मविश्‍वास, साहस और बल में वृद्धि होती है। यह सही बात है। मूँगा आत्‍मविश्‍वास और साहस बढ़ाता है, लेकिन हर किसी को मूँगा पहनना महँगा भी पड़ सकता है।

बिना जन्‍म पत्रिका दिखाए मूँगा पहना जाए तो इससे दुर्घटना भी हो सकती है। स्त्रियों की पत्रिका में मंगल अष्‍टम में नीच शत्रु राशिस्‍थ हो या शनि से इष्‍ट हो या शनि मंगल के साथ हो तो जीवन को भारी क्षति पहुँचा सकता है। यहाँ तक कि विधवा भी बना देता है।

सप्‍तम में मंगल या लग्‍न में मंगल भी कभी-कभी हानिकारक साबित हो सकता है। चतुर्थ भाव में पड़ा मंगल पारिवारिक सुख-चैन खत्‍म कर देता है। द्वितीय भाव स्‍त्री कुंडली में सौभाग्‍य सूचक है। इस भाव में पड़ा मंगल अशुभ हो तो मूँगा पहनने वाली स्‍त्री जल्‍दी विधवा हो जाती है।

  बिना जन्‍म पत्रिका दिखाए मूँगा पहना जाए तो इससे दुर्घटना भी हो सकती है। स्त्रियों की पत्रिका में मंगल अष्‍टम में नीच शत्रु राशिस्‍थ हो या शनि से इष्‍ट हो या शनि मंगल के साथ हो तो जीवन को भारी क्षति पहुँचा सकता है। यहाँ तक कि विधवा भी बना देता है।      



पारिवारिक कलह, कुटुंब से मनमुटाव और वाणी में दोष भी उत्‍पन्‍न करता है। भले वाणी साथ हो, लेकिन कटु वचन से सब कुछ बिगड़ जाता है। शनि और मंगल की युति कहीं भी हो तो मूँगा नहीं पहनना चाहिए।

लग्‍न में मंगल शुभ हो, लेकिन नवांश में मंगल की स्‍थिति खराब हो तो तब भी मूँगा नहीं पहनना चाहिए। पत्रिका में सोलह वर्ग होते हैं। जिसे षोडष्‍य वर्गी पत्रिका कहते हैं। उन सबको देखे बिना मूँगा पहनना भी महँगा हो सकता है। उदाहरण- लग्‍न में मंगल मेष या वृश्‍चिक का होकर, पंचम या नवम, दशम में हो, लेकिन नवांश में नीच का हो तो दाम्पत्य जीवन में बाधा का कारण बनेगा।

इसी प्रकार दशमाशा राज्‍यविचार में जब दशमेश होकर बैठे और शनि से युक्‍त बैठे व शनि से युति या दृष्‍टि हो तो नौकर, व्‍यापार, राजनीति और पिता के मामलों में कष्‍टप्रद बनेगा। इसी प्रकार होरा संपदा विचार में शनि-मंगल साथ हों तो भी संपत्ति को नुकसान पहुँचाएगा।

द्रेष्‍काण मातृ सौख्यम में शनि-मंगल का दृष्‍टि संबंध हो तो भाई को नुकसान देगा। ऐसी स्‍थिति में मूँगा कदापि न पहनें। बल्‍कि जिस भाव में हो, उस भाव के स्‍वामी की स्‍थिति लग्‍न में शुभ हो उसका रत्‍न पहनना चाहिए।

मंगल भूमि, मकान, भवन-निर्माण से संबंधित, पुलिस, सेना, प्रशासन क्षमता का कारक होता है। ये युद्धोन्‍यादि का भी कारक है। अत: आप जब भी मूँगा पहनें किसी योग्‍य व्‍यक्‍ति से परामर्श लेकर ही शुभ मुहूर्त में बनवाकर शुभ मुहूर्त में धारण करें।



रत्न एवं प्राकृतिक चिकित्सा
चिकित्सा केवल दवाई से होना चाहिए यह बात प्राचीन मान्यता के खिलाफ ही है। औषधि तो हमारी जीवन शक्ति (रेजिस्टेंस पॉवर) को कम ही करती है। योग, प्राणायाम, स्वमूत्र चिकित्सा, मक्खन, मिश्री (धागेवाली), तुकमरी मिश्री (अत्तारवालों के पास उपलब्ध होती है), धातु- सोना, चाँदी, ताँबा तथा लोहे के पानी से सूर्य-रश्मि चिकित्सा पद्धति (रंगीन शीशियों के तेल एवं पानी से), लौंग तथा मिश्री से चिकित्सा- ऐसे अनेक सरलतम साधन हैं, जिनसे बिना दवाई के हमारे शरीर का उपचार हो सकता है।

आज भी गौमूत्र चिकित्सा, अंकुरित चने-मूँग तथा मैथी दाने भोजन में लेने से, अधिक पानी पीने से आदि ये सभी ऐसे प्रयोग हैं, जिनसे यथाशीघ्र ही लाभ होता है। एक-एक गमले में एक-एक मुठ्ठी गेहूँ छोड़कर एक-एक दिन छोड़कर सात गमलों में जुआरे बोए जाएँ। इन जुआरों के रस से टी.बी., कैंसर जैसी बीमारियों को भी दबाया जा सकता है।

इसी प्रकार हमारे ऋषि-मुनियों ने रत्नों से भी कई बीमारियों के उपचार ज्योतिषी शास्त्र में बताए हैं। ये हमारे देश की ज्योतिष विद्या का एक अद्भुत चमत्कार ही है।

  रत्नों में प्रमुख 9 ग्रह के ये रत्न प्रमुख हैं : सूर्य- माणिक, चंद्र-मोती, मंगल- मूँगा, बुध- पन्ना, गुरु- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि-नीलम, राहू- लहसुनिया, केतु- लाजावत। मेष, सिंह व धनु राशि वाले कोई भी नग पहनें तो चाँदी में पहनना जरूरी है।      



रत्नों में प्रमुख 9 ग्रह के ये रत्न प्रमुख हैं : सूर्य- माणिक, चंद्र-मोती, मंगल- मूँगा, बुध- पन्ना, गुरु- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि-नीलम, राहू- लहसुनिया, केतु- लाजावत। मेष, सिंह व धनु राशि वाले कोई भी नग पहनें तो चाँदी में पहनना जरूरी है क्योंकि चाँदी की तासीर ठंडी है।

इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक, मीन, कुंभ इन राशि वालों को सोने में नग धारण करना चाहिए तथा मंगल का नग ताँबे में धारण करना चाहिए क्योंकि इन धातुओं की तासीर गरम है तथा राशियों की तासीर ठंडी है। इसके कारण इन तासीर वालों को जो शीत विकार होते हैं, उनको जल्दी ही लाभ होगा।

यदि शुद्ध रत्न खरीदने का सामर्थ्य नहीं हो तो उनकी जगह धातु को पानी अथवा तेल में उबाल कर एक लीटर पानी को उबालकर 250 ग्राम करके उस पानी को पीना भी लाभ देगा तथा उसके इसी प्रकार के तैयार किए हुए तेल से मालिश भी विशेष लाभप्रद सिद्ध होगी।

स्वास्थ्य उत्तम रखने के लिए यदि सामर्थ्य हो तो 12 महीने शरीर पर मालिश करके स्नान करना चाहिए अन्यथा शीत ऋतु में मालिश का सर्वाधिक महत्व है। धातु का लाभ 50 प्रतिशत होगा, रत्नों का लाभ शत-प्रतिशत होगा।
सर्वशक्ति सम्पन्न माँ बगलामुखी साधना
यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। सामनेवाले विरोधियों को शांत करने में इस विद्या का अनेक राजनेता अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो देशहित होगा।

मंत्र शक्ति का चमत्कार हजारों साल से होता आ रहा है। कोई भी मंत्र आबध या किलित नहीं है यानी बँधे हुए नहीं हैं। सभी मंत्र अपना कार्य करने में सक्षम हैं। मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मंत्र निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।

हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली माँ बगलामुखी की आराधना का सही प्रस्तुतीकरण दे रहे हैं। हमारे पाठक इसका प्रयोग कर लाभ उठाने में समर्थ होंगे, ऐसी हमारी आशा है।

http://hindi.webdunia.com/images/quote_open.gifयह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है।http://hindi.webdunia.com/images/quote_close.gif



इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है जिसे हम यहाँ पर देना उचित समझते हैं। इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) एक निश्चित समय पर पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।

आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
हमने उपर्युक्त सभी बारीकियाँ बता दी हैं। अब यहाँ पर हम इसकी संपूर्ण विधि बता रहे हैं। इस छत्तीस अक्षर के मंत्र का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व मंत्र इस प्रकार है--

विनियोग
ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि:
त्रिष्टुपछंद: श्री बगलामुखी देवता ह्मीं बीजंस्वाहा शक्ति: प्रणव: कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोग:।

ऋष्यादि न्यास-नारद ऋषये नम: शिरसि, त्रिष्टुय छंद से नम: मुखे, बगलामुख्यै नम:, ह्मदि, ह्मीं बीजाय नम: गुहेय, स्वाहा शक्तये नम:, पादयो, प्रणव: कीलक्षम नम: सर्वांगे।

हृदयादि न्यास
ऊँ ह्मीं हृदयाय नम: बगलामुखी शिरसे स्वाहा, सर्वदुष्टानां शिरवायै वषट्, वाचं मुखं वदं स्तम्भ्य कवचाय हु, जिह्वां भीलय नेत्रत्रयास वैषट् बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा अष्टाय फट्।

ध्यान
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेघां
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम्।
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी
देवीं भजामि घृत मुदग्र वैरिजिह्माम ।

मंत्र इस प्रकार है-- ऊँ ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा।

मंत्र जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशांश होम करना चाहिए। जिसमें चने की दाल, तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग होना चाहिए एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर के करना चाहिए।

शिव का धाम कैलाश-मानसरोवर
जहाँ की यात्रा प्रदान करती है मोक्ष...
धर्मयात्रा में इस बार हम आपको दर्शन करा रहे हैं मानसरोवर के। मानसरोवर वही पवित्र जगह है, जिसे शिव का धाम माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत में शिव-शंभु का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभु विराजते हैं।
कैलाश पर्वत, 22,028 फीट ऊँचा एक पत्थर का पिरामिड, जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभु की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहाँ एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है।

मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।





पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।

यह स्थान बौद्ध धर्मावलंबियों के सभी तीर्थ स्थानों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान के अलौकिक रूप ‘डेमचौक’ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। वह बुद्ध के इस रूप को ‘धर्मपाल’ की संज्ञा भी देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है। वहीं जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ने भी यहीं निर्वाण लिया। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहाँ ध्यान किया था।





मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीनकाल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएँ केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो है सभी धर्मों की एकता।

मानसरोवर दर्शन

ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं।
इस स्थान तक पहुँचने के लिए कुछ विशेष तथ्यों का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे इसकी ऊँचाई 3500 मीटर से भी अधिक है। यहाँ पर ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है, जिससे सिरदर्द, साँस लेने में तकलीफ आदि परेशानियाँ प्रारंभ हो सकती हैं। इन परेशानियों की वजह शरीर को नए वातावरण का प्रभावित करना है।


भारत से मानस कैलाश कैसे पहुँचें?
१. भारत से सड़क मार्ग। भारत सरकार सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर यात्रा प्रबंधित करती है। यहाँ तक पहुँचने में करीब 28 से 30 दिनों तक का समय लगता है। यहाँ के लिए सीट की बुकिंग एडवांस भी हो सकती है और निर्धारित लोगों को ही ले जाया जाता है, जिसका चयन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है।




२. वायु मार्ग। वायु मार्ग द्वारा काठमांडू तक पहुँचकर वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर झील तक जाया जा सकता है।

३. कैलाश तक जाने के लिए हेलिकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुँचकर, वहाँ से हिलसा तक हेलिकॉप्टर द्वारा पहुँचा जा सकता है। मानसरोवर तक पहुँचने के लिए लैंडक्रूजर का भी प्रयोग कर सकते हैं।

४. काठमांडू से लहासा के लिए ‘चाइना एयर’ वायुसेवा उपलब्ध है, जहाँ से तिब्बत के विभिन्न कस्बों - शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुँचकर मानसरोवर जा सकते हैं।

अजमेर की दरगाह शरीफ
दीदार गरीब नवाज की मजार का
दरगाह अजमेर शरीफ...एक ऐसा पाक-शफ्फाक नाम है जिसे सुनने मात्र से ही रूहानी सुकून मिलता है... अभी रमजान का माह चल रहा है...इस माह-ए-मुबारक में हर एक नेकी पर 70 गुना सवाब होता है। रमजानुल मुबारक में अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह की मजार की जियारत कर दरूर-ओ-फातेहा पढ़ने की चाहत हर ख्वाजा के चाहने वाले की होती है, लेकिन रमजान की मसरूफियत और कुछ दीगर कारणों से सभी के लिए इस माह में अजमेर शरीफ जाना मुमकिन नहीं है। ऐसे सभी लोगों के लिए धर्मयात्रा में हमारी यह प्रस्तुति खास तोहफा है।

दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि ख्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने के बाद उनके जहन में सिर्फ अकीदा ही बाकी रहता है। दरगाह अजमेर डॉट काम चलाने वाले हमीद साहब कहते हैं कि गरीब नवाज का का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि लोग यहाँ खिंचे चले आते हैं। यहाँ आकर लोगों को रूहानी सुकून मिलता है।




भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह।

ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...

तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।

धार्मिसद्‍भाव की मिसाल- धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को गरीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए...ख्वाजा के दर पर हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी जियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है।




देग का इतिहास- दरगाह के बरामदे में दो बड़ी देग रखी हुई हैं...इन देगों को बादशाह अकबर और जहाँगीर ने चढ़ाया था। तब से लेकर आज तक इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है।

कैसे जाएँ- दरगाह अजमेर शरीफ राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है। यह शहर सड़क, रेल, वायु परिवहन द्वारा शेष देश से जुड़ा हुआ है। यदि आप विदेश में रहते हैं या फिर यहाँ से जुड़ी ज्यादा जानकारी चाहते हैं तो दरगाह अजमेर डॉट कॉम या राजस्थान पर्यटन विभाग से संपर्क कर सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए स‌ंपर्क करें- 09311242802 या swamijinoida@gmail.com