Thursday, October 28, 2010

राहुकालम्

प्रत्येक वार को डेढ़ घंटा अनिष्ट कारक है, जिसे दक्षिण भारत में राहुकालम् कहते हैं। इसका प्रचलन अब उत्तर भारत में भी बढ़ने लगा है। अतः यथासम्भव शुभ कार्यो में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
1. रविवार     सायं 04.30 बजे से 06.00 बजे तक।
2. सोमवार     प्रातः 07.30 बजे से   09.00 बजे तक।
3. मंगलवार   दोपहर 03.00 बजे से 04.30 बजे तक।
4. बुद्धवार     दोपहर 12.00 बजे से 01.30 बजे तक।
5. गुरूवार     दोपहर 01.30 बजे से 03.00 बजे तक।
6. शुक्रवार     प्रातः 10.30 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक।
7. शनिवार     प्रातः 09.00 बजे से प्रातः 10.30 बजे तक।
क्रम:- सो, श, शु, बु, गु, मं, र।
           M  S     F      W     T      T    S
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ग्रह, दानवस्तु और मंत्र

सूर्य:- माणिक सुवर्ण  ताम्र गेहूं गुड़ घी रक्तवस्त्र रक्तपुष्प केसर मूंगा   रक्तगौ  रक्त चन्दन       07000 ओम हां हीं ह्रौं सः सूर्याय नमः अर्क
चन्द्र:- मोती सुवर्ण रजत चावल मिश्री दही श्वेतवस्त्र श्वेतपुष्प शंख कपूर  श्वेत बैल श्वेत चन्दन 11000 ओम श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः  पलाश
भौम:- मूंगा सुवर्ण ताम्र मसूर गुड़ घी रक्तवस्त्र रक्तकनेर केसर कस्तूरी रक्त बैल रक्त चन्दन 10000 ओम क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः खदिर
बुध:- पन्ना सुवर्ण कांसी मूंग खांड घी हरावस्त्र सर्व पुष्प हाथी दांत कपूर शस्त्र फल 09000 ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः अपामार्ग
गुरु पुखराज सुवर्ण कांसी चनादाल खांड धी पीतवस्त्र पीतपुष्प हल्दी पुस्तक घोड़ा पीतफल 19000 ओम ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः अश्वत्य
शुक्र:- हीरा सुवर्ण रजत चावल मिश्री दूघ श्वेतवस्त्र श्वेतपुष्प सुगन्ध दधि श्वेत धोड़ा श्वेत चन्दन 16000 ओम द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः उदुम्बर
शनि:- नीलम सुवर्ण लोहा उड़द कुलथी तेल कृष्णवस्त्र कृष्णपुष्प कस्तूरी कृष्णगो भैंस चप्पल 23000 ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः शमी
राहु:- गोमेद सुवर्ण सीसा तिल सरसों तेल नीलवस्त्र कृष्णपुष्प खड़ग कंबल घोड़ा शूर्प 18000 ओम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः दूर्वा
केतु:- लसनी सुवर्ण लोहा तिल सप्तधान्य तेल घूम्रवस्त्र घूम्रपुष्प नारियल कंबल बकरा शस्त्र 17000 ओम स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः कुशा
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मांगलिक दोष

मांगलिकः-कुण्डली में 1,4,7,8,12 घर में मंगल होने पर जातक / जातिका पूर्ण मांगलिक कहलाते हैं।
यदि वर की कुण्डली में 2,5,7,8,12 में मंगल हो तो पत्नी मर जाती है। कन्या के होने पर वैधव्य दोष लगता है।
दोष परिहारः-
1. कुण्डली में 1,2,4,7,8,11,12 में मंगल होने पर वर - वधू का विद्यटन होता है। परन्तु उच्चराशिस्थ एवं मित्रक्षेत्री होने पर दोष नहीं लगता।
2. लग्न में मंगल मेष राशि का, 12 में धनु का, 4 में वृश्चिक का, 7 में मीन का और 8 में कुम्भ का होने पर दोष नहीं होता।
3. 7,1,4,9,12 में शनि होने से मांगलिक दोष नहीं लगता।
4. मंगल का गुरु या चन्द्रमा के साथ होने पर भी मांगलिक दोष नहीं लगता। 1,2,4,5,7,8,11,12 में गुरु या चन्द्रमा के साथ मंगल बैठा हो अथवा इन भावों में मंगल हो परन्तु केन्द्र 4, 7, 10 में चन्द्रमा होने पर मांगलिक दोष नहीं लगता।

रत्न चिकित्सा

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3-5              jRrh


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2-25 jRrh

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अधिक जानकारी के लिए स‌ंपर्क करें-  09311424365 begin_of_the_skype_highlighting            09311424365      end_of_the_skype_highlighting, 07503124365  या swamijinoida@gmail.com

Thursday, October 14, 2010

उद्योग में वास्तु का महत्व

प्रिय जातकों,
यदि आप अपने कारखाने में सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए निम्न पहलुओं पर ध्यान दें, तो मॉ लक्ष्मी की सदैव आप पर कृपा बनी रहेगी तथा उन्नति आपके कदम चूमेगी ।
कारखाने में उत्तर और पूर्व में खाली जगह होनी चाहिए।
कारखाने का दरवाजा या प्रवेश पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या ऊँ का निशान होना चाहिए।
बॉस के केबिन के बाहर खड़े गणेश जी की तस्वीर, पेटिंग आदि लगानी चाहिए।
पूजन का स्थान दिशा में होना चाहिए।
कारखाने के सामने धार्मिक स्थल मंदिर, चर्च आदि नहीं होना चाहिए।
कारखाने के मालिक का कमरा दक्षिण-पश्चिम भाग में होना चाहिए।
सीढ़ी दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम भाग में बनवानी चाहिए।
मुख्य मशीन या भारी मशीन कारखाने के दक्षिण-पश्चिम, में होना चाहिए।
कच्चे माल का कमरा दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
तैयार माल का स्थल, पैकिंग और फारवर्डिंग वाले माल को उत्तर-पश्चिम उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व के स्थान पर रखना चाहिए।
गोदाम, भण्डार कक्ष या स्टोर रूम दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में होना चाहिए।
पानी की टंकी दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम में होनी चाहिए।
कारखाने का बॉयलर, जेनरेटर, ओवन, ट्रान्सफार्मर, तेल-इंजन आदि दक्षिण-पूर्व की दिशा में रखना चाहिए।
वजन तोलने वाली मशीन उत्तर-पश्चिम, मध्य-उत्तर या मध्य-पूर्व में रखना चाहिए।
कैशियर को पूर्व की दिशा में मुंह करके बैठना चाहिए। कैश बॉक्स दाएं हाथ की तरफ रखना चाहिए।
एकाउण्ट सेक्शन उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। एकाउन्ट ऑफिसर को उत्तर दिशा में बैठना चाहिए।
लॉकर और तिजोरी के लिए दक्षिणी भाग शुभ है जिसमें नकदी एवं जरूरी कागजात रख सकते हैं।
छत को सदैव साफ-सुथरा रखना चाहिए।
कार, स्कूटर आदि वाहन उत्तर, उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम भाग में खड़ा करना चाहिए।
उत्तर-पूर्व दिशा सदैव खाली रखना चाहिए, यहां से धन का आगमन होता है।
उत्तर-पष्चिम या दक्षिण-पूर्व में से किसी एक जगह पर शौचालय बनवाना चाहिए।
इति शुभम भूयात्।
शुभाशीर्वाद सहित ।
डॉ0 नरेन्द्र दीक्षित
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Tuesday, October 12, 2010

स्वप्न का शुभ - अशुभ फल








यदि दिन में घटित होने वाली बात रात्रि को सोते समय ज्यों की त्यों दिखाई देती है तो उस स्वप्न पर विश्वास न करें । दिन में जब हम बार-बार किसी वस्तु के बारे में सोंचते हैं और वही स्वप्न में हमें दिखाई देती है उस पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए । दिन के समय या सायं के समय स्वप्न दिखाई देता है वह भी सच नहीं होता है । रात्रि के समय प्रथम प्रहर में यदि स्वप्न दिखाई दे तो उसका फल एक वर्ष में होता है । दूसरे प्रहर के स्वप्न का फल छः महीने में, तीसरे प्रहर के स्वप्न का फल तीन माह में और अंतिम चतुर्थ प्रहर व ब्रह्म मुहुर्त में देखे गये स्वप्न का फल एक माह में मिलता है । अच्छा या बुरा स्वपन सूर्योदय के समय देखा जाय, उसका फल कुछ घण्टों में ही मिल जाता है । ऐसे में यदि कोई अशुभ स्वप्न दिखाई दे तो महामृत्युन्जय, गायत्री, हवनयज्ञ, आदि करवाना चाहिए । नीचे कुछ शुभ-अशुभ स्वप्न और उनके फलों के विषय में जानकारी दी जा रही है-


अन्न दिखाई देना  -धन का लाभ,
अंग कटना   -शुभ समाचार मिलना,
अंगूठी पहनना -खुशी प्राप्त होना,
अतिथि देखना -अचानक विपत्ति आना,
आकाश देखना -उन्नति हो,
अर्थी देखना - रोग से छुटकारा हो,
अन्धेरा देखना - बधा आना,
औषधि खाना या पीना- रोग दूर होना,
उल्लू देखना -रोग या शोक का आना,
आत्महत्या देखना -आयु लम्बी होना,
ऑपरेशन होते देखना -रोग की सम्भावना,
इमली खाना -पुत्र प्राप्त करना,
इन्द्र धनुष देखना -मुकदमें में जीत हो,
कब्रिस्तान देखना -सम्मान प्राप्त होना,
काला नाग देखना -राज्य सम्मान हो,
खून करना -दुःख आना,
खुजली करना -बीमारी आना,
गर्भपात देखना -असाध्य रोग,
ग्रहण देखना -अपमान होना,
गंगा नदी देखना -मुक्ति होना,
घड़ी देखना -तरक्की होना,
घोड़ा देखना -तरक्की होना,
चट्टाने देखना -काम में सफलता,
चिराग देखना -सुख शान्ति होना,
चैराहा देखना -धन हानि,
घर बनना -ख्याति मिलना,
छींक आना -कार्य में बाधा,
छिपकली देखना -अकस्मात् लाभ,
जागरण होते देखना -आस्था में वृद्धि,
जयमाला देखना -समृद्धि में कमी,
जेब कटना -कारोबार में घाटा,
ज्योतिषी देखना -सुख समृद्धि होना,
झोपड़ी देखना -घर प्राप्त होना,
झूला झूलते देखना -मन अशान्त होना,
डाक्टर देखना -घर में रोग आना,
डाकिया देखना -समाचार मिलना,
डाकू देखना -धन की हानि,
ढोलक बजाना -किसी व्यक्ति से मिलना,
थप्पड़ मारना -झागड़ा होना,
थप्पड़ खाना -शुभ,
छान करना -शुभ,
दॉंत निकलते देखना -दुःख होना,
दवाई पीना -रोग खत्म होना,
दुकान खाली देखना -धन की कमी होना,
दीवार गिरते देखना -धन की हानि,
धार्मिक कार्य करना -परिवार का सुख,
पशु देखना -कारोबार में लाभ,
पक्षी देखना -हानि होना,
पूजा करना -मित्रों से लाभ,
पर्वत गिरते देखना -धन नष्ट होना,
प्रकाश देखना -ज्ञान मिलना,
पकवान देखना -शुभकारक,
पाखण्डी देखना -धन का नुकसान,
परदेसी देखना -विदेश यात्रा होना,
पका फल देखना -अच्छा होता है,
नई दुल्हन देखना -घर में क्लेश होना,
फल देखना -सन्तान प्राप्ति,
फांसी लगते देखना -बाधा पैदा होना,
बंजारा देखना -व्यापार में लाभ,
वर्षगांठ देखना -आयु क्षीण होना,
बाढ़ आते देखना -मान-मर्यादा में कमी,
सगाई देखना -विवाह देर से होना,
वर्षा होते देखना -बीमारी या झगड़ा,
बाजार देखना -खुशहाली होना,
भूकम्प देखना -शत्रु से भय,
भूत प्रेत देखना -सौभाग्य बढ़ना,
भिखारी देखना -यात्रा होना
मुर्दे के साथ खाना -दुःख की समाप्ति,
जहर खाना -दुःख आना,
मिठाई खाना -तरक्की होना,
महात्मा देखना -धन मिलना,
यात्रा करना -धन मिलना,
युद्ध देखना -सफलता प्राप्त करना,
यमराज देखना -उम्र बढ़ना
रसोई घर देखना -अन्न धन की वृद्धि,
मूर्ति देखना -मोक्ष देखना,
मृत्यु देखना -भाग्य उदय होना,
वन में दौड़ना -चिता होना,
श्मशान देखना -लंबी आयु होना,
शेषनाग देखना -कल्याणकारी,
शेर देखना -लक्ष्मी की प्राप्ति,
समाचार पत्र देखना -धन की हानि,
सोना देखना -धन की हानि,
हत्या देखना -दुश्मन बनना,
हाथी दांत देखना -अच्छी फसल होना,
हड्डी देखना -धन की प्राप्ति,
श्राद्ध देखना -पित्र खुश होना,
सेहरा देखना -घर में क्लेश,
हवालात देखना -सम्मान मिलना,
स्टेशन देखना -यात्रा का शुभ होना,
यज्ञ देखना -सौभाग्य बढ़ना,
शोक सभा देखना -आनन्द बढ़ना,
मृत देखना -शुभ होता है,
मधुमक्खी देखना -कारोबार में लाभ,
हरा बगाचा देखना -अन्न-धन-जन वृद्धि,
अंधेरा देखना -बांधा आना,
जंगल देखना -राज्य एवं यश मिलना,
दंतमंजन करना -प्रसन्नता मिलना,
पूर्वज के दर्शन होना -सुरक्षा होगी,
प्रेमी देखना -जल्दी मिलन हो,
दही-दूध देखना -कारोबार में उन्नति,
दुकान का छोड़ना -भाग्यहीन हो,
चौपड़ खेलना -कार्य में प्रगति,
दुश्मन दिखाई देना -धन लाभ होना,
मुर्दा देखना -घर में झगड़ा,
शीशा तोड़ना -खुशी में भंग पड़ना,
बटुआ पाना -सुख ऐश्वर्य हो,
बटुआ खोना -दुःख मिलेगा,
दवाई देखना -बीमारी आने वाली है,
दवाई गिरना -रोग से मुक्ति पाना,
दॉंत दिखाई देना -स्वास्थ्य मे सुधार होना,
पूजा करते हुए देखना -मन में शान्ति होना,
पहाड़ देखना -अशुभ होने का डर होना,
प्रसाद बांटना -शान्ति मिलेगी,
फिल्म देखना -कियी काम में बदलाव,
नग्न शव देखना -पाप या दोष खत्म हो,
मित्र बनना -शुभ कार्य होना,
नदी दिखाई देना -अच्छा स्वास्थ्य मिले,
गन्दा नाला देखना -विपत्ति आयेगी,
भाभी दिखाई देना -भतीजा पैदा हो,
उल्टे वस्त्र पहनना -मजाक हो,
खुद को नहाते हुए देखना -बैराग पैदा हो,
बौना आदमी दिखई देना -शुभ समय हो,
बिल्ली देखना -अशुभ,
रत्नो का दिखाई देना -शुभ,
छींकते हुए देखना -कार्य में बाधा,
क्षियों का चहचहाना -झगड़े का डर हो,
रूपये देखना -मेहनती बने,
सिक्के देखना -बीमार हो,
गर्भ दिखाई देना -मुसीबतें होंगी,
शतरंज देखना -समय की हानि होगी,
पत्थर दिचााई देना -शत्रु बढ़े,
कुत्ते का काटना -मुश्किलें बढ़ेगी,
हंसते हुए देखना -मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी,
भूकम्प देखना -सन्तान को कष्ट होगा,
खाई देखना -धन एवं प्रसिद्धि मिलेगी,
धनुष खींचना -लाभकारी यात्रा होना,
कीचड़ में फंसना -कष्ट एवं खर्च होना,
अपनी मृत्यु देखना -आयु बढ़ना,

अधिक जानकारी के लिए स‌ंपर्क करें- 09311242802 या swamijinoida@gmail.com 

श्रृष्टि के चार युग


युग के विषय में
1. सतयुग
सतयुग की उत्पत्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को दिन बुधवार के प्रथम प्रहर में श्रवण नक्षत्र के वृद्धि योग में हुईं। इसके 1728000 हैं।
इस युग में भगवान श्री नारायण के चार अवतार हुए- 1. मत्स्य 2. कच्छप 3. वाराह और 4. नृसिंह अवतार । धर्म चार चरणों में पूर्ण था। 
2. त्रेतायुग
इस युग की उत्पत्ति वैषाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को दिन सोमवार के दूसरे प्रहर में रोहिणी नक्षत्र एवं शोभन योग में हुई। इसके वर्ष 1296000 हैं।
इस युग में तीन अवतार हुए- 1. श्रीवामन, 2. श्रीपरशुराम 3. श्री रामचन्द्र अवतार।
3. द्वापरयुग
इस युग की उत्पत्ति माद्य कृष्ण-पक्ष की अमावस्या को दिन शुक्रवार के तृतीय प्रहर में घनिष्ठा नक्षत्र, वरियान योग में हुई। इसके वर्ष 864000 हैं।
इस युग में पूर्णब्रम्ह के दो अवतार हुए- 1. श्रीकृष्ण, 2. बलदेव ।
4. कलियुग
इस युग की उत्पत्ति भाद्रपद कृष्ण पक्ष की त्रयोदषी को दिन रविवार के आधी रात्रि के समय में अश्लेशा नक्षत्र व्यतिपात योग में हुई। इसके वर्ष 432000 हैं।
इस में अवतार- 1. बुद्ध 2. कल्कि जो अब होना है।
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